उत्तर भारत में बड़े भूकंप का खतरा टालेंगे कम तीव्रता के झटके

                                                                                                                                                         
दिल्ली-एनसीआर समेत समूचे उत्तर भारत में बीते एक-डेढ़ महीनों के दौरान एक दर्जन से अधिक छोटे भूकंप आए हैं। कोरोना संकट के बीच जब अधिकतर लोग घरों में थे तो बार-बार भूकंप के झटकों ने चिताएं बढ़ाईं लेकिन भूकंप विशेषज्ञों का मानना है कि छोटे भूकंप से ज्यादा खतरा नहीं है बल्कि ये बड़े भूकंप के खतरे को कम कर सकते हैं। राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र के निदेशक बीके बंसल ने 'हिन्दुस्तान' से बातचीत में कहा कि दिल्ली-एनसीआर और उत्तर भारत में कई फाल्ट लाइनें गुजरती हैं। इनमें हलचलों से जब ऊर्जा निकलती है तो भूकंप आते हैं।


ऐसा नहीं है कि हलचलें अभी हो रही हैं, पहले नहीं थीं। पहले भी थीं लेकिन यह देखा गया है कि इनमें तब भी छोटे भूकंप ही ज्यादा थे। पिछले दस वर्षों में इस क्षेत्र में २८० भूकंप ऐसे आए जिनकी तीव्रता दो से नीचे थी जबकि ७०-८० भूकंप तीन-चार के बीच के थे। बहुत कम भूकंप ही चार या इससे ज्यादा तीव्रता के थे। इससे पहले के आंकड़े भी इसी प्रकार के हैं। यह पैटर्न और कई अध्ययन यह संकेत करते हैं कि छोटे भूकंप बड़े भूकंप के खतरे को कम करते हैं क्योंकि इनके जरिये ऊर्जा निकलती रहती है। यदि किसी क्षेत्र में १०० साल तक कोई भूकंप नहीं आता है तो वहां बड़े भूकंप की आशंका ज्यादा हो सकती है।


साल तक यदि किसी क्षेत्र में भूकंप नहीं आता है तो वहां बड़े भूकंप की आशंका ज्यादा हो सकती है। हाल में जो कई छोटे भूकंप आए हैं, वे मूलत: महेन्द्रगढ़-देहरादून, रोहतक-मुरादाबाद, सोहना फाल्ट, दिल्ली-हरिद्वार, मथुरा-देहरादून, राजस्थान ग्रेट बाउंड्री फाल्ट आदि में हो रही हलचलों के परिणाम हैं। इन फाल्ट में कभी लंबे समय तक निष्क्रियता देखी गई है तो कभी-कभी हलचलों के चलते छोटे भूकंप आते हैं। इन भूकंपों का केंद्र जयपुर, रोहतक, फरीदाबाद, दिल्ली, सोनीपत आदि रहे हैं। ये सभी हल्के भूकंप थे और कम गहराई के थे, इसलिए समूचे एनसीआर में इनके झटके महसूस किए गए। इसके अलावा उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश में भी भूकंप आए हैं।